राधा अष्टमी व महालक्ष्मी व्रत कथा पूजा एवं उद्यापन विधि 2023 (राधा अष्टमी और महालक्ष्मी व्रत कथा, पूजा विधि, तिथि हिंदी में)
महालक्ष्मी व्रत को राधा अष्टमी भी कहा जाता है। इसी दिन से इस व्रत का विधान है और लगातार 16 दिनों तक इस व्रत का विधान है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
राधा अष्टमी और महालक्ष्मी व्रत का महत्व (Radha अष्टमी और महालक्ष्मी व्रत महत्व):
राधा अष्टमी या महा लक्ष्मी व्रत पितृ पक्ष की महिलाओं द्वारा अपने परिवार को धन्य धान से तृप्ति प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है। राधा अष्टमी या महालक्ष्मी व्रत करने का एक कारण यह भी है कि महिलाएं अपने परिवार को माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को धन्यवाद देना चाहती हैं।
महालक्ष्मी व्रत की पूजा विधि:
इस व्रत को सबसे पहले व्रत के दिन सूर्योदय के समय स्नान आदि करके पूजा का संकल्प लिया जाता है। पूजन के संकल्प और स्नान के पहले इस दिन दूर्वा को अपने शरीर पर घीसा जाता है।
संकल्प लें समय व्रत करने वाली महिला अपने मन में यह तय करती है कि माता लक्ष्मी मां आपका यह व्रत पूरी विधि विधान से पूरा कर सकती है। मैं इस व्रत के हर नियम का पालन करूँ। उनका कहना है कि माता लक्ष्मी कृपया कृपा करें, कि मेरा यह व्रत बिना किसी विघ्न के पूर्ण हो जाए। इस संकल्प के बाद एक सफेद डोरे में 16 गठान लगाकर उसे हल्दी से पीला कर दिया जाता है और फिर उसे व्रत करने वाली महिला द्वारा अपनी कलाईयों पर बांधा जाता है।
अब पूजा के नजरिए से एक पाट पर रेशमी कपड़ा बेचाया जाता है। इस वस्त्र पर लाल रंग से साजी लक्ष्मी माता की तस्वीर और गणेश जी की मूर्ति रखी गई है। कुछ लोग इस दिन मिट्टी से बने हाथी की पूजा भी करते हैं। अब मूर्ति के सामने पानी से भरा कलश स्थापित किया जाता है और इस कलश पर अनोखा ज्योति कलश स्थापित किया जाता है। अब इसकी पूजा सुबह और शाम के समय होती है। और मेवे तथा मिठाई का भोग लगाया जाता है।
पूजन के प्रथम दिन लाल नाड़े में 16 गाठ लगाएं इसे घर के हर सदस्य के हाथ में बांधा जाता है और पूजन के बाद इसे लक्ष्मी जी के चरण में चढ़ाया जाता है। व्रत के बाद ब्राह्मण को भोजन दिया जाता है और दान दक्षिणा दिया जाता है। इस व्रत के बाद सभी को लक्ष्मी जी से फल प्राप्ति की प्रार्थना की जाती है।
महालक्ष्मी व्रत की कथा या कहानी (Mahalaxmi vrat Story or katha):
इस व्रत के संदर्भ में कई कथाएं उदाहरण हैं यह हम आपको 2 कथाएं बता रहे हैं।
प्रथम कथा – बहुत पुरानी बात है. एक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। वह बैच्छम ब्राह्मण भगवान विष्णु की पूजा प्रतिदिन करता था। उनकी भक्ति से भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार पुष्पांजलि अर्पित की। ब्राह्मण ने माता लक्ष्मी का वास अपने घर में होने का आशीर्वाद दिया। ब्राह्मण के ऐसे कथन पर भगवान विष्णु ने कहा कि यह मंदिर में रोज एक स्त्री आती है और यह गोबर के उपले थापति है। कौन सी माता लक्ष्मी हैं. तुम अपने घर में निमंत्रित करो। देवी लक्ष्मी के चरणों में घर वापसी से भोज घर धन धान्य से भर दिया जाएगा। ऐसा ही एक भगवान विष्णु अदृश्य हो गये। अब दूसरे दिन सुबह ब्राह्मण ही देवी लक्ष्मी के इंतजार में उनके मंदिर में उपस्थित हुए। जब उन्होंने लक्ष्मी जी को गोबर के उपले थापते देखा, तो उन्होंने अपने घर पधारने का आग्रह किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गईं कि यह बात ब्राह्मण को विष्णु जी ने ही कही है। तो ब्राह्मणों को महालक्ष्मी व्रत करने की सलाह दी गई। लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा कि तुम 16 दिनों तक महालक्ष्मी व्रत करो और व्रत के आखिरी दिन चंद्रमा का पूजन करके अर्ध्य व्रत से पूर्ण व्रत करो।
ब्राह्मण ने भी महालक्ष्मी के कहे अनुसार व्रत किया और देवी लक्ष्मी ने भी उसकी मनोकामना पूर्ण की। उसी दिन से यह व्रत श्रद्धा से किया जाता है।
द्वैतीय कथा – एक बार हस्तिनापुर में महालक्ष्मी व्रत के दिन गांधारी ने नगर की साड़ी स्त्री को पूजन के लिए आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने कुंती को दीक्षा नहीं दी। गांधारी के सभी पुत्रों ने पूजन के लिए अपनी माता को मिट्टी दी और इसी मिट्टी से एक विशाल हाथी का निर्माण कराया और उसके महल के बीच में स्थापित किया। नगर की सारी स्त्रीया जब पूजा के लिए जाने लगी, तो कुंती उदास हो गई। जब कुंती के पुत्रो ने अपनी उदासी का कारण पूछा तो उसने सारी बात बताई। इस पर अर्जुन ने कहा माता आपकी पूजा की तैयारी मैं आपके लिए हाथी लेकर आता हूं। ऐसा तीरंदाज अर्जुन इंद्र के पास गया और अपनी माता के पूजन के लिए ऐरावत को ले आया। इसके बाद कुंती ने सारी विधि विधान से पूजा की और जब नगर की अन्य स्त्रियो को पता चला तो कुंती के यहां इंद्र के ऐरावत आ गए। तो उन्होंने भी पूजा के लिए रिबन पुट और सभी ने सविधि पूजन किया।
ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत की कहानी सेल बार कही जाती है। और हर वस्तु या पूजन सामग्री 16 बार बताई जाती है।
महालक्ष्मी व्रत उद्यापन विधि:
- व्रत में उद्यापन के दिन एक सुपड़ा लें। इस सुपाड़े में सेल श्रंगार के सामान लेकर इसे दूसरा सुपाड़े से बढ़ाया जाता है। अब 16 मूर्तियां बनती हैं। पूजा के बाद इसे देवी जी का स्पर्श मानकर दान किया जाता है।
- व्रत के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देते हैं और लक्ष्मी जी को अपने घर का आशीर्वाद देते हैं।
- माता लक्ष्मी को भोग लगाते हुए समय ध्यान देते हुए माता के भोजन में लहसुन प्याज से बना भोजन अन्यथा है। माता के साथ सभी को भी भोजन दे जिन्होनें व्रत रखना चाहिए। भोजन में पूड़ी सब्जी खेड रायता आदि विशेष रूप से होता है।
- पूजा के बाद भगवान को भोग लगी थी थाली गाय को खिलाते हैं और माता को चढ़ाया हुआ श्रृंगार का सामान दान करते हैं।
महालक्ष्मी व्रत 2023 में कब मनाया जाता है (राधा अष्टमी और महालक्ष्मी व्रत तिथि मुहूर्त)
महालक्ष्मी व्रत हर साल भादव माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। इस अष्टमी को राधा अष्टमी भी कहते हैं। साल 2023 में राधा अष्टमी या महालक्ष्मी का व्रत की शरद ऋतु 22 सितम्बर के दिन से है. और इस व्रत का 6 अक्टूबर को समापन है. इस साल 15 दिन का है महालक्ष्मी व्रत.
महालक्ष्मी व्रत की भक्ति | महालक्ष्मी व्रत का समापन |
22 सितम्बर | 6 अक्टूबर |
सामान्य प्रश्न
प्रश्न : महालक्ष्मी व्रत 2023 कब है
उत्तर : 22 सितंबर से 6 अक्टूबर तक
प्रश्न : राधा अष्टमी कब मनाई जाती है?
उत्तर : भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को
प्रश्न : राधा अष्टमी का क्या महत्व है?
उत्तर : कहा जाता है कि इसी दिन राधा जी का जन्म हुआ था।
प्रश्न : राधा और रुक्मणी में से लक्ष्मी कौन थी?
उत्तर : राधा रानी मां लक्ष्मी का स्वरूप और रुक्मणी भी मां देवी का स्वरूप थीं, इसलिए माना जाता है कि राधा और रुक्मणी एक ही अंश थीं। इस प्रकार श्रीकृष्ण का विवाह रुक्मणी से हुआ था
प्रश्न : राधा जी का दूसरा नाम क्या था?
उत्तर : वृत्तिका
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