पृथ्वी की आतंरिक संरचना – parthvi ki antrik sarchna kya he?
मानवीय
प्रयासों के फलस्वरूप गंभीरतम खदानों में प्रायः 3 किलोमीटर की गहराई तक
ही प्रवेश किया जा सका है भारत की कोलार की स्वर्ण खदान विश्व की सबसे गहरी
खदान हे जहाँ प्रायः 3600 मीटर की गहराई तक खनन कार्य किया गया है इसी तरह
पेट्रोलियम तेल क्षेत्रों में तेल कुपो की गहराई की प्रायः 4 किलोमीटर या
कुछ अधिक होती है पृथ्वी के विशाल आयतन की तुलना में प्रायः 5 किलोमीटर
गहराई तक का प्रत्यक्ष ज्ञान अति तुच्छ हे एवं इन नगण्य प्रत्यक्ष ज्ञान की
सहायता से भूगर्भ का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं हे इसकी
आतंरिक रचना का विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने के लिए अप्रत्यक्ष साधनो का
प्रयोग किया गया हे भूगर्भ का जो कुछ भी ज्ञान आज प्राप्त हो सका हे वह सब
अप्रत्यक्ष साधनो के द्वारा ही संभव हो सका हे
पृथ्वी की आतंरिक संरचना को मूल रूप से तीन परतो में विभाजित किया गया हे
Crust, mental, core
क्या आप क्रस्ट (crust) के बारे जानते हे ?
यह
पृथ्वी का सबसे ऊपरी भाग हे इसकी गहराई पृथ्वी की सतह से लगभग 35 किलोमीटर
हे इसकी मोटाई महासागरों और महाद्वीपों में क्रमश: कम ज्यादा होती हे इस
परत का निर्माण सिलिका(silica) और एल्युमीनियम(aluminium) से हुआ हे इसलिए इसे सियाल (sial) कहते हे इस परत को लिथोस्फेरे(lithosphere) भी कहा जाता हे इसका घनत्व 2.75-2.90 तक हे
क्या आप मेन्टल (mental) के बारे जानते हे ?
क्रस्ट के निचले भाग को मेन्टल कहते हे इसकी गहराई 35 से 2890 किलोमीटर तक होती हे इसका निर्माण सिलिका (silica)और मैग्नेसियम (magnesium) से हुआ हे इसलिए इसे सिमा (sima)कहते हे इस परत को पेरोस्फेरे (perosphere) भी कहा जाता हे इसका घनत्व 2.90-4.75 होता हे
क्या आप क्रोड(core) के बारे जानते हे ?
मेन्टल
के निचे वाले भाग को क्रोड कहा जाता हे यह भाग पृथ्वी के निचले मेन्टल से
पृथ्वी के केंद्र तक हे इसकी गहराई 2890-6370 किलोमीटर तक हे इसका निर्माण निकिल (nickel) और लोहे(iron fe) से हुआ हे इसलिए इसे निफे (nife)परत
कहते हे पृथ्वी के अंदर जाने पर तापमान से ज्यादा दाब अधिक होता हे इसीलिए
क्रोड ठोस अवस्था में होता हे इस परत को बेरोस्फेरे भी कहा जाता हे
image source http://mryoung6e2lithosphere.weebly.com/ |
परिचय
:- उक्त लेख श्री कुंदन पटेल द्वारा दिया गया है इन्होंने msc में पोस्ट
ग्रेजुएशन किया है पढ़ने में इनकी रुचि हमेशा प्रथमिय रही है ।
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