अबकी धुलंडी (रंगपंचमी) में ab ki dhulandi me poem in hindi
बंडी रह गई कोरी अबकी धुलंडी में
रंग न पाई गोरी अबकी धुलंडी में
जल रही थी होली , सूना था चूल्हा
जला न पाया होरी अबकी धुलंडी में
कर न सकी प्रायश्चित रामू की बहू
जीत गया अघोरी अबकी धुलंडी में
चिमटा लाया हामिद खुद समझ गया
दादी की कमजोरी अबकी धुलंडी में
झूर रहा झूरी और झूरे हीरा-मोती
गोई के हाथ डोरी अबकी धुलंडी में
सवा सेर गेहूँ चुका न पाया शंकर
‘परिंदा’ खाये बोरी अबकी धुलंडी में
राम शर्मा परिंदा
मनावर जिला धार मप्र
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