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prithviraj sukumaran and kayoze Irani on sarzameen | ‘हर लड़का अपने पिता की तरह बनना चाहता है’: पृथ्वीराज सुकुमारन और कायोज ने खुद को बताया मम्मा बॉय; ‘सरजमीन’ बाप-बेटे के उलझे रिश्तों की कहानी

prithviraj sukumaran and kayoze Irani on sarzameen | ‘हर लड़का अपने पिता की तरह बनना चाहता है’: पृथ्वीराज सुकुमारन और कायोज ने खुद को बताया मम्मा बॉय; ‘सरजमीन’ बाप-बेटे के उलझे रिश्तों की कहानी


9 घंटे पहलेलेखक: भारती द्विवेदी

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देशभक्ति और बाप-बेटे के उलझे रिश्ते पर बनी फिल्म ‘सरजमीन’ जियो हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो चुकी है। फिल्म में पृथ्वीराज सुकुमारन पहली बार काजोल के साथ स्क्रीन शेयर करते नजर आ रहे हैं। वहीं, इब्राहिम अली उनके बेटे के रोल में नजर आ रहे हैं। फिल्म को कायोज ईरानी ने डायरेक्ट किया है। दैनिक भास्कर से बातचीत में कायोज ने पृथ्वी के साथ काम करने के अनुभव और डायरेक्शन की चुनौतियों पर बात की है। वहीं, पृथ्वी ने बतौर एक्टर रियल लोकेशन पर शूट करने का एक्सपीरियंस शेयर किया है।

पृथ्वी, आपने भास्कर इंटरव्यू में कहा था कि बतौर डायरेक्टर आपको रियल लोकेशन पर शूट करना पसंद है। बतौर एक्टर ये कितना मुश्किल होता है?

बतौर एक्टर रियल लोकेशन पर शूट करने एक ब्लेसिंग की तरह है। सरजमीं वो फिल्म ही नहीं हैं, जो स्टूडियो ग्रीन पर्दे पर शूट हो। आप सरजमीं में जो भी देखेंगे, सब रियल है। हमने इस फिल्म को रियल लोकेशन पर शूट किया है। कायोज ने इन जगहों को ढूंढने में अपना एफर्ट लगाया है। यहां तक कि क्लाइमेक्स भी एक वाकई चुनौतीपूर्ण लोकेशन पर शूट हुआ है। वह भी रियल लोकेशन थी, जो मनाली से 2 घंटे की दूरी पर कहीं मौजूद है। वास्तव में, मैं कायोज को शुक्रिया कहना चाहूंगा कि उनकी वजह से मुझे ‘लूसिफर 2’ के लिए 3 लोकेशन मिल गए थे। मैं कई बार मनाली गया हूं लेकिन मुझे पता भी नहीं था कि ऐसी जगह सच में हैं।

'सरजमीन' की शूटिंग मनाली में रियल लोकेशन पर की गई है।

‘सरजमीन’ की शूटिंग मनाली में रियल लोकेशन पर की गई है।

आप ये पोस्टर देखिए, वहां सच में बहुत ठंड थी। जब हम शूट कर रहे थे, तब वहां जमा देने वाली ठंड थी। जब हम डायलॉग बोल रहे थे, तब हमारे मुंह से भाप निकल रही थी। ऐसी चीजें आपको बेहतर एक्टर दिखाने में मदद करता है। मैं फिर कहूंगा कि बतौर एक्टर ये एक ब्लेसिंग है। हां, लेकिन बतौर, फिल्ममेकर और क्रू ये बहुत मुश्किल होता है। मैं कायोज और पूरी टीम को इस फिल्म को अच्छे प्लान करके शूट करने के लिए पूरे नंबर दूंगा। असल में, सरजमीन बेस्ट प्लान और बेस्ट एक्जीक्यूटेड शूट था, जिसका मैं हिस्सा रहा हूं।

आप दोनों ही एक्टिंग से डायरेक्शन में आए हैं। क्या इससे कोई मदद मिलती है?

कायोज- देखिए, मैंने एक्टर के तौर पर अब तक एक फिल्म की है। मैं फिल्म करना नहीं चाहता था। मैंने स्कूल में डिसाइड कर लिया था कि मैं डायरेक्टर बनूंगा। जब मेरी पहली फिल्म खत्म हुई थी, उसके बाद मैं डायरेक्शन की तरफ वापस लौट गया था। मैं अपने एक्टिंग एक्सपीरियंस के लिए भी शुक्रगुजार हूं। जब आप किसी के जूते में पांव रखते हैं, तब आप सीखते हैं कि सामने वाला क्या फील कर रहा है। मैंने सीखा कि इब्राहिम ने अपने डेब्यू पर क्या फील किया होगा क्योंकि मैंने भी एक्टर के रूप में अपना डेब्यू किया था। लेकिन मेरी लाइफ का अरमान हमेशा डायरेक्टर बनना ही था। मॉनिटर के पीछे कुर्सी पर बैठना, मेरे लिए घर जैसा है। मैं उसी जगह रहना चाहता हूं।

कायोज, डायरेक्शन में पृथ्वी से आपको कोई सलाह मिली? अगर हां तो उसके बारे में बताइए।

पृथ्वी सर से एक दो नहीं, कई सारे सजेशन मिले हैं। पृथ्वी सर प्रमोशन के दौरान इस फिल्म के को-डायरेक्टर हैं। मैंने हर रोज, हर सीन इनसे डिस्कस की। हमने लाइटिंग, शार्ट डिवीजन पर बात की। इससे भी ज्यादा हमने सीन्स के मीनिंग पर बात की और ये उसमें काफी कुछ लेकर आए। मैं ये बात दिल से कह रहा हूं। कई दफा मैं कहता था कि नहीं ये मेरे दिमाग में नहीं है लेकिन मॉनिटर तक आते-आते,मैं इनकी बात से सहमत हो जाता था।

फिल्म में इनका होना बहुत बड़ी बात है। वो कभी भी मुझसे अपने किरदार में कुछ भी चेंज करने के लिए नहीं कहते थे। उन्होंने जो भी बदलाव या सलाह दी वो इब्राहिम, सपोर्टिंग कास्ट या कैमरा के लिए होता था। मैं ये कहना चाहूंगा कि अगर कोई डायरेक्टर अपना डेब्यू कर रहा है, तो प्लीज पृथ्वीराज सुकुमारन को कास्ट कीजिए। मुझे ये बात एडिट पर समझ आई कि वो मेरे लिए कितने मददगार रहे हैं।

कायोज साल 2012 में आई फिल्म स्टूडेंट ऑफ द ईयर में एक्टिंग कर चुके हैं।

कायोज साल 2012 में आई फिल्म स्टूडेंट ऑफ द ईयर में एक्टिंग कर चुके हैं।

कायोज, आपने एड, शॉर्ट और अब फीचर फिल्म डायरेक्ट कर लिया। तीनों फॉर्मेंट में काम करना कितना मुश्किल होता है?

डारेक्टशन का काम बहुत चैलेंजिग होता है लेकिन ये वो चैलेंज है, जो मैं मुझे पसंद है। मेरे लाइफ का सबसे खुशी का दिन होता है, जब मैं सेट पर होता हूं। जहां तक सबसे चैलेंजिग की बात है, तो बिना किसी डाउट के फीचर फिल्म शूट करना सबसे मुश्किल है। क्योंकि एडवर्टाजमिंट ने अब एक नया मोड़ ले लिया है। आपको क्लाइंट, एजेंसी इन सबको को खुश करना होता है। शॉर्ट फिल्म असल में बहुत आसान है क्योंकि इसमें आप पर कोई रोक-टोक नहीं है। जो आपके दिल में हो वो आप बनाओ। फीचर हमेशा मुश्किल होता लेकिन मैं हमेशा कहता हूं कि ‘सरजमीन’ का मेरा सबसे बुरा दिन भी मेरे लिए किसी भी अन्य दिन से बेहतर है।

फिल्म में काजोल का एक डायलॉग है, मां चाहे जितना भी प्यार कर लें, बेटा अपनी पिता की तरह बनना चाहता है। आप दोनों असल जिंदगी में इससे कितना रिलेट करते हैं?

पृथ्वी- मेरा मानना है कि हर लड़का अपने जीवन में कम से कम एक बार अपने पिता को आदर्श मानता है। वह अपने पिता जैसा बनना चाहता था। अगर ऐसा नहीं है, तो पिता ने सचमुच कुछ गलत किया है। मेरे लिए यह बात वाकई बहुत मायने रखती है। मैंने हमेशा अपने पिता को आइडियल माना है। मैं हमेशा उसके जैसा बनना चाहता था। मेरा पिता एक अभिनेता था। उनकी तरह बनने के पीछे उनकी स्टारडम, सफलता, धन या फेम कुछ भी नहीं था। एक बेटे के रूप में मैंने सिनेमा से दूर उनके व्यक्तित्व को सचमुच आदर्श माना। वे एक एकेडिमिशियन थे। वे घर जैसे होते थे। उनका निजी व्यक्तित्व मेरे लिए आदर्श रहा। मैं अपनी मां को बहुत प्यार करता हूं।

पृथ्वीराज के मााता-पिता दोनों ही मलयालम इंडस्ट्री का जानामाना नाम हैं। उनके पिता सुकुमारन का 49 साल की उम्र में निधन हो गया था।

पृथ्वीराज के मााता-पिता दोनों ही मलयालम इंडस्ट्री का जानामाना नाम हैं। उनके पिता सुकुमारन का 49 साल की उम्र में निधन हो गया था।

मैं अपनी मां को बहुत प्यार करता हूं। जब मैं बड़ा हो रहा था, तब मैं मम्मा बॉय था। लेकिन मैंने हमेशा अपने पिता को आइडियलाइज किया है। यह बात लगभग हर बड़े होते हुए लड़के के लिए सच है।

कायोज- ये डायलॉग मेरे लिए दिल के बहुत करीब है। मैं इस लाइन से सौ फीसदी सहमत हूं। ऐसा नहीं था कि ये अच्छा लग रहा है तो इसे डायलॉग बना दो। मैं भी एक पूरा मम्मा बॉयज हूं। मैं हर समय मम्मी-मम्मी करते रहता हूं लेकिन आप अपने पिता की तरह बनने की ख्वाहिश रखते हैं। और सच में एक्टर, फेम या उनका स्टारडम नहीं। मैं अपने घर में भी वैसा ही इंसान बनने की ख्वाहिश रखता हूं, जैसे वो हैं। जब मेरे पिता ने मेरी फिल्म देखी, तब मैंने उन्हें कहा कि ये लाइन आपके लिए है।

आपके पिता बोमन ईरानी डायरेक्शन और राइटिंग में कदम रखे चुके हैं। क्या आप भी राइटिंग की तरफ जाएंगे और क्या उनसे डायरेक्शन में कोई मदद मिली?

मैं सच में मानता हूं कि एक डायरेक्टर को सब कुछ करना होता है और उसे किसी भी चीज का क्रेडिट नहीं मिलता। जब स्क्रिप्ट आपके पास आती है, तो आपको डायरेक्टर ड्राफ्ट और आप उसे जिस तरह से देखते हैं, उसे लिखना होता है। जब आप शॉट्स को ब्लॉक करते हैं, तो आप सिनेमैटोग्राफर को बताते हैं कि आप इस तरह से शॉट्स चाहते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि आप इसका क्रेडिट ले लें। डायरेक्टर के तौर पर यह प्रोसेस बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपका काम है। आप सेट पर एकमात्र ऐसे इंसान हैं, जिसकी कोई तय भूमिका नहीं है। आपको बस उसे ढालना और आकार देना है।

जहां तक लिखने की बात है, तो मुझे लिखने से प्यार है। मुझे राइटिंग का प्रोसेस पसंद है और मैं राइटर्स के साथ बैठा भी हूं लेकिन प्लीज मुझे उसका जीरो क्रेडिट दें। इस फिल्म में पापा ने एक कैमियो किया है। उन्होंने तीन-चार तक दिन तक हमारे साथ शूट किया है। उन्होंने मुझे बहुत सताया है।

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