53 मिनट पहले
- कॉपी लिंक

टीवी सीरियल ‘सबकी लाडली बेबो’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अनुज सचदेवा आज छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक अपनी पहचान बना चुके हैं। हाल ही में वह वेब सीरीज ‘छल कपट: द डिसेप्शन’ में नजर आए। दैनिक भास्कर से बातचीत में अनुज ने न सिर्फ इस सीरीज में अपने किरदार की तैयारी के बारे में बताया, बल्कि पर्सनल लाइफ और खासतौर पर शादी को लेकर भी खुलकर बात की है।
जब आपने पहली बार इस सीरीज का नाम ‘छल कपट’ सुना, तो पहला रिएक्शन क्या था?
जब मैंने पहली बार इस सीरीज का नाम छल कपट सुना, तो मुझे लगा कि यह नाम बिल्कुल सही है। शुरुआत में इस सीरीज का नाम वो 7 दिन रखा गया था, क्योंकि कहानी में शादी होती है और पूरी कहानी उन्हीं सात दिनों के इर्द-गिर्द घूमती है। लेकिन वह नाम सिर्फ अस्थायी था। अब जो नाम छल कपट रखा गया है, वह कहानी के थीम थ्रिलर, सस्पेंस और मिस्ट्री के साथ पूरी तरह मेल खाता है। यह नाम सुनते ही एक रहस्यमय और रोमांचक एहसास होता है।
ये एक लड़की की मौत के इर्द-गिर्द घूमती थ्रिलर सीरीज है।
सीरीज छल कपट में जो आपका किरदार है, उसके बारे में कुछ बताइए।
इस सीरीज में मैं विक्रम शांडेल का किरदार निभा रहा हूं, जो एक पॉलिटिशियन का बेटा है। इस रोल के लिए मैंने काफी तैयारी की। मैंने यह समझने की कोशिश की कि एक नेता कैसे बोलता है, उसकी बॉडी लैंग्वेज कैसी होती है और वह पब्लिक के सामने कैसे पेश आता है। इसके लिए मैंने आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा की कई स्पीच देखीं। कैसे वो बेहद सहज और स्पष्ट तरीके से अपनी बात रखते हैं और लोगों को अपनी बात से जोड़ते हैं। इन सब चीजों से मैंने काफी कुछ सीखा और वही अनुभव इस किरदार में उतारने की कोशिश की।
आपको क्या लगता है, आज के समय में छल कपट कितना मौजूद है?
आज के समय में छल-कपट बहुत अधिक देखने को मिलता है। मुझे लगता है कि कोई भी इंसान भगवान नहीं बन सकता और शायद बनना चाहिए भी नहीं। हम इंसान उसी रूप में बने हैं जिसमें अच्छाई और बुराई दोनों का मिश्रण होता है। हर व्यक्ति के अंदर कुछ अच्छी और कुछ बुरी आदतें होती हैं। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि कुछ न कुछ छल-कपट हर इंसान के भीतर होता ही है।
लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि इंसान को हर दिन अपने भीतर एक नई अच्छी आदत जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि वह धीरे-धीरे खुद को बेहतर बना सके।
इस सीरीज में आपका जो किरदार है, वह आपके असली व्यक्तित्व से कितना मेल खाता है?
साल 2020 के बाद मेरा झुकाव जियोपॉलिटिक्स की तरफ बढ़ा, जिससे मुझे दुनिया को एक नए नजरिए से समझने का मौका मिला। इससे मेरे अंदर धैर्य भी विकसित हुआ। इन सभी अनुभवों ने मुझे इस किरदार को निभाने में काफी मदद की। इसके अलावा मेरा यह मानना है कि जरूरी नहीं कि हर बार जवाब शब्दों से ही दिया जाए। कई बार बिना बोले भी बहुत कुछ कह दिया जाता है और यह किरदार भी कुछ ऐसा ही है। यही कुछ बातें हैं, जो असल में मेरे स्वभाव से काफी मिलती-जुलती हैं।
सीरियल सबकी लाडली बेबो से टीवी करियर की शुरुआत की थी।
इस सीरीज का सबसे यादगार पल आपके लिए क्या था?
अक्सर ऐसा होता है कि कुछ शब्द बोलते वक्त हमारी जुबान फिसल जाती है या हम अटक जाते हैं। एक्टर्स के साथ भी यही होता है। इस सीरीज में एक सीन था, जिसमें मुझे अबेटमेंट टू सोसाइटी कहना था। लेकिन मैं बार-बार उस शब्द पर अटक रहा था।
मजे की बात ये है कि सिर्फ शूटिंग के दौरान ही नहीं, जब हम डबिंग कर रहे थे तब भी मैं उसी शब्द को गलत ही बोलता रहा। उस वक्त भी सब हंसी नहीं रोक पाए। वो एक ऐसा मजेदार पल था, जिसे आज भी जब याद करता हूं, तो मुस्कान आ ही जाती है।
टीवी, फिल्म और ओटीटी तीनों में आपने काम किया है। इन तीनों में आपको क्या अंतर महसूस होता है?
जब मैंने फिल्मों में काम करना शुरू किया, तभी मुझे यह एहसास हो गया था कि आने वाले समय में फिल्मों का चलन धीरे-धीरे कम हो सकता है। आज के दौर में टेलीविजन की ऑडियंस बहुत बड़ी है। यहां एक कलाकार को नाम, शोहरत और एक अलग पहचान मिलती है, जो लंबे समय तक लोगों के दिलों में बनी रहती है।
जहां तक ओटीटी की बात है, तो आज का जमाना वेब का है। यहां दर्शकों के पास कंटेंट देखने के कई विकल्प होते हैं। पहले के समय में लोग आसानी से थिएटर जाकर फिल्में देख लेते थे, टिकट भी महंगे नहीं होते थे। लेकिन अब टिकट की कीमतें भी काफी बढ़ गई हैं। ऊपर से टेक्स लग जाते हैं। ऐसे में कई लोग इंतजार करते हैं कि फिल्म थिएटर से ओटीटी पर आ जाए, फिर आराम से घर बैठे देख लेंगे।
आपने फिल्म दिल्ली हाइट्स में कैमियो किया था, तो उसी के बाद फिल्मों में क्यों ट्राई नहीं किया और टीवी पर क्यों आए?
मैं अपने पिता जी के साथ फुटवियर डिजाइनिंग का भी काम करता हूं। लेकिन हमेशा से मन में कुछ अलग करने का था। इसी लिए 2005 में मैंने अपने करियर की शुरुआत मॉडलिंग से की थी। 2006 में दिल्ली हाइट्स में कैमियो करने के बाद मेरे सामने दो विकल्प थे या तो मैं एक्टिंग स्कूल जाकर प्रोफेशनल ट्रेनिंग लूं या टीवी में काम करना शुरू कर दूं। टीवी का फायदा यह था कि मुझे एक्टिंग का अनुभव मिलता, मेरी स्किल इम्प्रूव होती और साथ ही मैं पैसे भी कमा पाता।
वापस घर जाने का विकल्प अपने लिए नहीं रखा था, इसलिए मैंने फैसला किया कि टीवी पर काम करूंगा। फिर मेरा डेब्यू सीरियल बेबो से हुआ, जो करीब दो साल तक चला और मुझे अच्छी खासी पहचान भी मिली।
अनुज नच बलिए 9 में उर्वशी ढोलकिया के साथ नजर आए थे।
आने वाले प्रोजेक्ट्स के बारे में कुछ बताना चाहेंगे?
इस साल के अंत तक नेटफ्लिक्स की एक फिल्म रिलीज होने वाली है, जिसमें मेरा किरदार काफी खास है। शूटिंग के दौरान भी बहुत मजा आया।
आपके फैंस के मन में बस एक सवाल है कि आखिरकार उनके चहेते अनुज सचदेवा शादी कब करने वाले हैं?
मेरे परिवार वाले तो चाहते हैं कि मैं जल्द शादी कर लूं, खासकर मेरी मम्मी पीछे पड़ी हैं। सच कहूं तो मेरी शादी पहले ही हो जानी चाहिए थी। 2020 में मेरी शादी होने वाली थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण ब्रेकअप हो गया। उस समय हमारी दोनों फैमिली भी मिल चुकी थी। अब देखना है कि कब शादी होती है। लेकिन इस इंडस्ट्री में शादी करना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल जरूर है।