Malini Awasthi’s folk song spread all over the world | पूरी दुनिया में छाया मालिनी अवस्थी का लोकगीत: बोलीं- नाम और पैसा कमाना मकसद नहीं, बस पूर्वजों के गानों को लोगों तक पहुंचाना है

Malini Awasthi’s folk song spread all over the world | पूरी दुनिया में छाया मालिनी अवस्थी का लोकगीत: बोलीं- नाम और पैसा कमाना मकसद नहीं, बस पूर्वजों के गानों को लोगों तक पहुंचाना है


1 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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फेमस लोक गायिका और पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित मालिनी अवस्थी ने हाल ही में कोक स्टूडियो भारत के लिए ‘होली आए रे’ गाया था। इस लोकगीत ने स्पॉटीफाई के ग्लोबल टॉप 100 में प्रवेश करके एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की, जिससे यह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अब तक के सबसे सफल भारतीय लोकगीतों में से एक बन गया। हाल ही में मालिनी अवस्थी ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत के दौरान बताया कि पूर्वजों की लोकगीत के विरासत को लोगों तक पहुंचाना है। नाम और पैसा के लिए गाना उनका मकसद नहीं है।

सवाल- आपने अपनी गायकी को आधुनिक धारा में ढालने की कोशिश नहीं की, बल्कि अपनी शुद्ध लोक शैली को ही दुनिया तक पहुंचाने का काम किया है। आपके गानों में मिलावट नजर नहीं आता है?

जवाब- जब विश्वास और संगीत का लक्ष्य कुछ और हो तब वहां मिलावट नहीं होती है। वहां सिर्फ शुद्ध चीज ही मिलेगी। गीत की अभिव्यक्ति को लेकर जब कलाकार बहुत संजीदा होता है, तब वहां कुछ और विचार नहीं आता है। इसे आप दुर्भाग्य कह सकते हैं कि अब इंडस्ट्री पूरी तरह से मार्केट पर निर्भर हो गई है।

अब म्यूजिक इंडस्ट्री में भी मार्केट की मांग के हिसाब से गाने बन रहे हैं। कभी सुनने वालों का दबाव होता है, तो कभी मेकर्स का। कभी-कभी कलाकार को खुद भी यह ख्याल आता है कि वह अपनी इमेज बदलें। मुझे लगता है कि इस पूरे प्रोसेस में कई लोग हैं।

मैं नाम और पैसा कमाने के लिए इस क्षेत्र में नहीं आई हूं। जो गाने हमारे पूर्वजों ने रचे हैं, उसे लोगों तक पहुंचना मेरा उद्देश्य है। अगर आपकी नियति ईमानदार है, विचार में पवित्रतता है तो कोई कितना भी प्रलोभन दे। उनकी तरफ ध्यान नहीं जाएगा।

सवाल- आपने इंटरनेशनल स्तर पर कई बड़े संगीतकार-गायक के साथ कोलैबोरेशन किया है। अभी विशाल मिश्रा के साथ आपने जो कोलैबोरेशन कोक स्टूडियो भारत के लिए किया है। उसके बारे में कुछ बताएं?

जवाब– कोक स्टूडियो ने नए सीजन की ओपनिंग ही पारंपरिक लोकगीत से किया है। मुझे इस बात कि खुशी है कि उत्तर-प्रदेश का लोक संगीत पहली बार कोक स्टूडियो में आया है। जाहिर सी बात है, कोक स्टूडियों का अपना एक श्रोता वर्ग है। जिसमें युवा ज्यादा हैं। इस स्टूडियो की ग्लोबल स्तर पर बहुत बड़ी पहुंच है।

ऐसा लोगों का भ्रम है कि लोक संगीत से युवा वर्ग नहीं जुड़ते हैं, लेकिन ‘होली आए रे’ ने सारी धारणाएं तोड़ दी हैं। इस गाने के लिए जब विशाल मिश्रा ने मुझे फोन किया, तब मुझे बहुत खुशी हुई। होली परिवार, प्रेम, रंग और गुझिया से बनती है। इसलिए उस गाने में इन शब्दों का प्रयोग किया गया है।

लोक कलाकारों के बारे में लोगों की यही धारणा होती है कि वे सिर्फ एक विशेष वर्ग के लिए गीत गा सकते हैं। इस गाने ने लोगों की उस धारणा को गलत साबित कर दिया। मुझे अच्छा लग रहा है कि लोग पलटकर लोक संगीत की तरफ देख रहे हैं।

सवाल- हमारी खुद की सभ्यता अनमोल धरोहर है, लेकिन उस पर बाहर का बहुत ज्यादा प्रभाव हो रहा था। खासकर फिल्मों के संगीत में, लेकिन कुछ वेब सीरीज में लोक संगीत सुनने को मिले हैं?

जवाब– जितना जड़ से भागोगे, जड़ वापस बुलाएगी। मेरा संघर्ष उस दौर में था, जब लोकगीत गाना अपमान समझा जाता था। लोग गायक को बेचारा, गंवार, पिछड़ा हुआ, देहाती समझा जाता था। अशिक्षित वो लोग हैं, जो इन गीतों की भाव और गरिमा को नहीं समझ पा रहे हैं।

खैर, आज तो लोक संगीत का बहुत सुंदर समय है। आज ‘पंचायत’ सीरीज में ‘राजा जी’ जैसे लोकगीत का बहुत ही खूबसूरत इस्तेमाल किया जा रहा है। लोक संगीत को लेकर आम लोगों के मन में यही धारणा कि इसे मनोरंजन के लिए सुनिए, झूमिए, नाचिए और गाइए। जबकि सिर्फ ऐसा नहीं है।

इसका एक बहुत ही मजबूत पक्ष है। लोकगीतों में हमारे पूर्वजों का अनुभव है, जिसमें बहुत बड़ा सबक है, शिक्षाएं हैं। इसमें भारत का पूरा जीवन दर्शन है। अहिंसा और रिश्तों-नातों को जोड़ने की बात कही गई है।

हर दिन को उत्सव की तरह मनाने की बात है। सामूहिकता में विश्वास करने की बात है। मेरी जिंदगी का सिर्फ एक ही मकसद रहा है कि इन सब बातों को लोगों के सामने लेकर आऊं। अभी मेरी एक किताब ‘चंदन किवाड़’ आई है। इसमें जीवन के संघर्ष, संगीत यात्रा, लोक संस्कृति की झलक है।

सवाल- ना सिर्फ संगीत, बल्कि आप ऐसे कार्यक्रम भी आयोजित करती हैं। जिसके जरिए लोग अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ सकें?

जवाब- हमारी एक संस्था ‘सोनचिरैया’ है। इस संस्था के माध्यम से हमलोग ऐसे लोक कलाकारों को एक मंच देते हैं। जिसको लोगों ने देखा और सुना नहीं है। हम श्रेष्ठ महिला कलाकारों को सम्मानित करके उन्हें एक लाख रुपए देते हैं। कजरी गीत का वर्कशॉप लेते हैं। मैं आखिरी सांस तक भारत की महान सांस्कृतिक धरोहर को आगे ले जाना चाहती हूं।

सवाल- हिंदी फिल्मों में आपने बहुत कम गाने गाए हैं। इसकी क्या वजह रही है?

जवाब- फिल्मों का तरीका बहुत अलग हो गया है। आज लोग अपने हिसाब से गाना बनाकर एक दिन पहले पूछते हैं कि कल फ्री हैं क्या? मुंबई आ सकती हैं? मेरा तो अपना जीवन है। शोज चलते रहते हैं। इस वजह से बहुत सारे गाने छूट जाते हैं। दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि लोकगीतों को लेकर फिल्में बहुत कम बनती हैं।

अगर ग्रामीण परिवेश पर कोई कुछ बनाएगा तो जरूर गाऊंगी। अमेजन प्राइम वीडियो से पंचायत के अगले सीजन के लिए कॉल आया था। मैंने पहले भी फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ में एक सामूहिक विवाह का गीत ‘सुंदर सुशील’ और फिल्म ‘इशक’ में ‘भागन की रेखा’ गाया था। जहां उस तरह के गाने की डिमांड होती और मुझे बुलाया जाता है तो जरूर जाती हूं।

सवाल- आपको पद्म श्री मिल चुका है, समाज के लिए काफी कुछ कर चुकी हैं और भी कोई इच्छा बाकी रह गई है?

जवाब- लोगों को सिखाना है। मैंने कभी सोचा नहीं था कि लोकगीत गाकर धन, प्रतिष्ठा सब मिलेगा। यह धन मेरा तो है नहीं, इसे वापस देना चाहिए। इसी सोच के तहत हमने संस्था बनाई है। साल में पांच उत्सव अपनी संस्था के माध्यम से करती हूं। मुझे ऐसे बच्चों को सिखाना है, जो दुर्भाग्यवश जीवन के सुखद पल को नहीं देख पा रहे हैं।



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