कन्नप्पा: भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति की अमर गाथा
भारतीय धार्मिक इतिहास में अनेक ऐसे भक्त हुए हैं, जिनकी श्रद्धा और समर्पण की मिसाल आज भी दी जाती है। उन्हीं में से एक हैं भगवान शिव के महान भक्त कन्नप्पा। उनकी कथा भक्ति, त्याग और अद्वितीय प्रेम का एक अद्भुत उदाहरण है।
कन्नप्पा कौन थे?
कन्नप्पा, जिन्हें भक्त कन्नप्पा नयनार के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण भारत के 63 नयनार संतों में से एक थे। उनका जन्म एक शिकारी परिवार में हुआ था, और उनका वास्तविक नाम थिन्नन था। शिकारी होने के बावजूद, उनके हृदय में भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति थी।
भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति
थिन्नन बचपन से ही वीर, साहसी और निडर थे। शिकार करना उनका मुख्य व्यवसाय था, लेकिन भाग्य ने उन्हें भगवान शिव के एक अद्वितीय भक्त में बदल दिया।
एक दिन जब वे जंगल में शिकार कर रहे थे, तो उनकी नज़र एक शिवलिंग पर पड़ी। उसी पल उनके मन में भगवान शिव के प्रति गहरा प्रेम जाग उठा। बिना किसी धार्मिक नियमों की परवाह किए, उन्होंने अपनी सरल और निष्कपट भावना से भगवान की पूजा शुरू कर दी।
- वे अपने मुख में जल भरकर शिवलिंग पर अर्पित करते थे।
- शिकार से प्राप्त मांस को प्रसाद के रूप में चढ़ाते थे।
- जंगल से सुंदर फूल लाकर शिवलिंग को सजाते थे।
उनकी भक्ति इतनी निश्छल और गहरी थी कि स्वयं भगवान शिव ने उनकी भक्ति को स्वीकार कर लिया।
परम परीक्षा और अद्वितीय बलिदान
कथा के अनुसार, भगवान शिव ने कन्नप्पा की भक्ति की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। एक दिन शिवलिंग से अचानक रक्त बहने लगा। कन्नप्पा ने देखा कि भगवान शिव की एक आंख से रक्त बह रहा है। अपनी निःस्वार्थ भक्ति के कारण उन्होंने बिना किसी संकोच के अपनी एक आंख निकालकर शिवलिंग पर रख दी।
जब दूसरी आंख से भी रक्त बहने लगा, तो कन्नप्पा बिना सोचे-समझे दूसरी आंख भी अर्पित करने को तैयार हो गए। ठीक उसी समय, भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने कन्नप्पा की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य दृष्टि प्रदान की। भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि उनकी भक्ति सदैव अमर रहेगी।
कन्नप्पा की भक्ति का महत्व
कन्नप्पा की कथा यह संदेश देती है कि सच्ची भक्ति किसी बाहरी नियमों या रीति-रिवाजों की मोहताज नहीं होती। यह केवल प्रेम, समर्पण और निष्कपट भावना से परिपूर्ण होती है। उनकी कथा यह भी सिखाती है कि भगवान के लिए सब कुछ त्याग देने वाला भक्त ही उन्हें सबसे प्रिय होता है।
आज भी दक्षिण भारत के श्रीकालहस्ती मंदिर (आंध्र प्रदेश) में कन्नप्पा की भक्ति को याद किया जाता है। वे भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्तों में से एक माने जाते हैं।
निष्कर्ष
भक्त कन्नप्पा की कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान तक पहुंचने के लिए केवल सच्ची श्रद्धा, प्रेम और त्याग की आवश्यकता होती है। उनकी भक्ति न केवल इतिहास में अमर है, बल्कि आज भी करोड़ों भक्तों के लिए प्रेरणादायक है।
“सच्ची भक्ति वह है, जहां प्रेम समर्पण से भी बढ़कर हो!”