Relationship with Om Puri broke after one and a half year of marriage | शादी के डेढ़ साल के बाद ओमपुरी से टूटा रिश्ता: सीमा कपूर बोलीं- अपमानित हुई, तलाकशुदा स्त्री को लोग भोग की वस्तु समझते हैं

Relationship with Om Puri broke after one and a half year of marriage | शादी के डेढ़ साल के बाद ओमपुरी से टूटा रिश्ता: सीमा कपूर बोलीं- अपमानित हुई, तलाकशुदा स्त्री को लोग भोग की वस्तु समझते हैं


8 मिनट पहलेलेखक: वीरेंद्र मिश्र

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राइटर-डायरेक्टर सीमा कपूर की आत्मकथा ‘यूं ही गुजरी है अब तलक’ हाल ही में प्रकाशित हुई है। इस किताब में सीमा कपूर ने अपने जीवन के संघर्षों और अनुभवों के साथ-साथ ओम पुरी के साथ रिश्ते और उनके साथ गुजारे पलों के बारे में भी लिखा है। पिछले दिनों सीमा कपूर दैनिक भास्कर के मुंबई ऑफिस में आईं। इस दौरान उन्होंने अपनी किताब, जीवन संघर्ष और ओम पुरी के साथ रिश्ते को लेकर बातचीत की। इस दौरान उन्होंने क्या कहा, जानते हैं उन्हीं की जुबानी..

ओम पुरी से पहली मुलाकात

ओम पूरी साहब से पहली मुलाकात 1979 में हुई थी। मैं उस समय बॉम्बे (अब मुंबई) पहली बार आई थी। पुरी साहब पृथ्वी थिएटर में एक नाटक ‘बिच्छू’ का रिहर्सल कर रहे थे। उस नाटक को मेरे बड़े भाई रंजीत कपूर डायरेक्ट कर रहे थे। उसमें पुरी साहब मेन रोल कर रहे थे। उस समय वे स्ट्रगल कर रहे थे। जबकि मेरे बड़े भाई टॉप के नाटक डायरेक्टर थे। उस समय मैं कॉलेज के फर्स्ट ईयर में थी।

11 साल तक रिलेशनशिप के बाद ओम पुरी और सीमा कपूर ने शादी की थी

11 साल तक रिलेशनशिप के बाद ओम पुरी और सीमा कपूर ने शादी की थी

शादी के डेढ़ साल के बाद अलग होना चाहते थे

1992 की बात है। शादी के डेढ़ साल के बाद पुरी साहब मुझसे अलग होना चाहते थे। उनके जीवन में एक और स्त्री नंदिता आ गई थीं। पुरी साहब उनसे शादी करना चाह रहे थे, उस समय मैं प्रेग्नेंट थी। पुरी साहब ने तलाक के पेपर भेज दिए थे। उस तनाव में 5-6 महीने के गर्भ में अपना बच्चा खो दिया। मैंने अपना दुख किसी से भी शेयर नहीं किया। यहां तक की अपने पेरेंट्स से भी नहीं। मेरे पेरेंट्स पहले से ही दुखी थे, उसने अपना दुख शेयर करके उन्हें और दुखी नहीं करना चाहती थी।

मेरे सामने ही नंदिता को फोन करते थे

मेरे सामने ही फोन पर नंदिता से घंटों बात करते थे। मैं अवॉइड करती थी। उनकी आपस की बातें सुनकर मुझे दुख ना हो, इसलिए दूसरे कमरे में चली जाती थी। मैं नहीं चाहती थी कि उनकी बातें सुनकर मुझे दुख हो, कुछ रिएक्ट करूं और लड़ाई हो। पुरी साहब तो यही चाह रहे थे कि लड़ाई-झगड़े हों और रिश्ता टूट जाए।

डिवोर्स को समाज में कलंक माना जाता था

एक तरफ घर टूटने की पीड़ा, दूसरी तरफ खुद को अपमानित महसूस कर रही थी। किसी और स्त्री के लिए मुझे छोड़ा गया। आज से 35 साल पहले समाज में डिवोर्स को कलंक माना जाता था। मैंने डिवोर्स लेने के लिए शादी तो नहीं की थी। जब कोई महिला शादी करती है तो वह स्थायित्व रिलेशनशिप चाहती है।

ओम पुरी-सीमा कपूर

ओम पुरी-सीमा कपूर

11 साल तक के अफेयर के बाद शादी की थी

मैंने इस लिए 11 साल तक के अफेयर के बाद शादी नहीं की थी, कि डेढ़ साल में रिश्ता खत्म हो जाए। समझ में नहीं आया कि 11 साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद अचानक ऐसा क्या हुआ कि शादी के डेढ़ साल के बाद रिश्ता टूट गया।

पुरुष को दूसरों की अदाएं भाती हैं

पुरुष की मानसिकता यह है कि उड़ती हुई तितली को पकड़ना चाहता है। जब उसे पकड़ लेता है तब उस तितली की सुंदरता खत्म हो जाती है। मुझे निदा फाजली साहब की एक शेर याद आती है। ‘दुनिया जिसे कहते हैं, जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है।’ जो चीज मिल जाती है, उसकी वैल्यू नहीं रहती है। पुरुषों की सामंतवादी सोच का जो नजरिया है, उसमें स्त्री वस्तु ही समझी जाती है। पुरुष को जैसे ही कोई मिल जाती है। उसको दूसरे की अदाएं भाने लगती है।

मैं लड़कर उन्हें हासिल नहीं करना चाहती थी

यह एक स्त्री के स्त्रीत्व का अपमान था। हमने आर्य समाज में जाकर शादी की थी। उसके बाद रिसेप्शन दिया था। शादी के डेढ़ साल के बाद मेरा प्रेम छिन गया था। पुरी साहब डिवोर्स के लिए कोर्ट में गए, लेकिन मुझे कोर्ट में नहीं जाना था। मैंने कहा कि मुझे नहीं लड़ना है। मुझे लड़कर जमीन-जायदाद और पुरुष को नहीं हासिल करना है। उससे कोई फायदा नहीं होता है। लड़कर सिर्फ गुलामी हासिल कर सकते हैं, प्रेम नहीं पा सकते हैं।

अन्नू कपूर सीमा कपूर के बड़े भाई हैं

अन्नू कपूर सीमा कपूर के बड़े भाई हैं

वह सही कदम था या गलत, पता नहीं

इससे पहले की चीजें खराब हो जातीं और पुरी साहब का हाथ उठता, गाली गलौज करते। मैं खुद घर छोड़कर चली गई। मुझे लगा कि वे नंदिता के साथ खुश रहेंगे। यह सही कदम था या गलत, पता नहीं। जो सांसारिक लोग हैं, उनका कहना था कि वह घर तुम्हारा था। तुम्हें छोड़कर नहीं आना चाहिए था, लेकिन मुझे किसी तरह का झगड़ा नहीं करना था। मैंने अपने पेरेंट्स को कभी भी लड़ते-झगड़े नहीं देखा था।

हमारे घर में तो जवानी शब्द बोलने पर पाबंदी थी

हमारी परवरिश ऐसे घर में हुई है, जहां पर गाली गलौज की अनुमति नहीं थी। यहां तक जवानी शब्द नहीं बोल सकते थे। मैं जब 10 साल की थी तब ‘आन मिलो सजना’ फिल्म आई थी। राजेश खन्ना का गाना ‘यहां वहां सारे जमाने में तेरा राज है, जवानी वो दीवानी तू जिंदाबाद’ अपने छोटे भाई के साथ नाच नाच कर गा रही थी। मम्मी ने सुना तो जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

तलाकशुदा स्त्री को लोग भोग की वस्तु समझते हैं

पुरुष समाज तलाकशुदा स्त्री को भोग की वस्तु समझता है। उसे सांत्वना देने के बजाय बिस्तर में खुश करने की सोचता है। यह जो लोगों की मानसिकता होती है, उस समय स्त्री को इसकी जरूरत नहीं होती है। उसे दोस्ती, मित्रता, इज्जत की जरूरत होती है। क्योंकि वह पहले से ही परित्याग के अपमान से जूझ रही होती है। उसे सम्मान की जरूरत होती है। कुछ ऐसे डायरेक्टर्स थे। जब काम मांगने जाती थी तो उनके व्यवहार देखकर बहुत आहत हुई थी।

नंदिता से प्रताड़ित होने लगे

मुझे शुरू से ही नंदिता के विवाद झेलने पड़े हैं। जब से वो पुरी साहब की जिंदगी में आईं, तभी से मेरी भी जिंदगी में आईं हैं। पुरी साहब के बारे में कभी मैंने कोई बात नहीं कही। उनको नंदिता के साथ रहने में खुशी थी, मैंने सोचा कि वहीं खुश रहें। मैं अलग हो गई। खैर, तकलीफ हो बहुत हुई। पुरी साहब का तो सब ठीक हो गया था, लेकिन एक समय ऐसा हुआ जब वे नंदिता से प्रताड़ित होने लगे। तब शायद उनको अपनी गलती का एहसास हुआ होगा।

फोन पर खूब रोए और माफी मांगी

लंदन में पुरी साहब का मेजर ऑपरेशन था, वहां उनके साथ सिर्फ उनका सेक्रेटरी था। उनको पैरालिटिक अटैक हुआ था। उनको लगा था कि बच नहीं पाएंगे तो वहां से माफी मांगने के लिए फोन किए थे। हर इंसान के अंदर गिल्ट तो होता ही है। वो कलाकार बहुत अच्छे थे, बहुत ही भावुक इंसान थे। अब गलती हो गई थी। ऑपरेशन के एक दिन पहले लंदन से फोन किए और रोए, माफी मांगी। उन्होंने कहा था- सीमा, मैंने तुम्हारे साथ जो भी किया, उसके लिए माफ कर देना। मेरे लिए भी वह रिश्ता बहुत अहम था। समय के साथ जख्म भर जाते हैं। मैं ऐसी इंसान हूं कि मेरे अंदर गुस्सा ज्यादा देर तक नहीं टिकता है। यह अच्छा है या बुरा मुझे नहीं मालूम।

रिकवरी के कुछ महीनों बाद मेरे घर आने लगे थे

ऑपरेशन के कुछ महीनों के बाद उनका फोन दोबारा नहीं आया। मैंने भी सामने से फोन करना उचित नहीं समझा। उनका बड़ा नाम था, ईश्वर ना करे कुछ हो जाता तो खबर मिल ही जाती। कुछ महीनों की रिकवरी के बाद वे मेरे घर आने लगे थे। शायद उनको मुझसे सांत्वना मिलती रही होगी। मेरे करीब आ गए थे, उनको थोड़ा ठहराव लगता था। उनको नंदिता से लड़ाई झगड़ों से समस्या होती थी।

ओम पुरी-नंदिता

ओम पुरी-नंदिता

नंदिता ने मेरे खिलाफ बोलना शुरू कर दिया

2011-12 में नंदिता ने मेरे खिलाफ बहुत सारी चीजें बोली थी। पुरी साहब मुझे बोलते थे कि तुम कोई एक्शन मत लेना, नहीं तो बच्चे से मिलने नहीं देगी। बेवजह झगड़े होंगे। मैंने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी। जब नंदिता ने पुरी साहब पर डोमेस्टिक वायलेंस का केस किया था तब मैंने एक इंटरव्यू दिया। उसे लेकर नंदिता ने मुझे पर भी मानहानि का केस कर दिया।

प्रॉपर्टी को लेकर कभी कोई दावा नहीं की

वह केस चलता रहा, पुरी साहब के जाने के बाद उनका वकील ही नहीं आता था। मुझे समझ में नहीं आया कि उनके मान की क्या हानि हुई है? उसके बाद एक और केस कर दिया कि मेरी गाड़ी उनके बच्चे का पीछा करती है। पुलिस ने तहकीकात की, तो पता चला कि ऐसी कोई बात नहीं थी, उसने मानसिक प्रताड़ना के लिए झूठा केस किया था। उसके बाद पैसों से संबंधित केस कर दिया। जबकि मैंने तो आज तक प्रॉपर्टी को लेकर कोई दावा नहीं किया। ना ही पुरी साहब ने कोई प्रॉपर्टी मुझे दी है। जब कि पुरी साहब की प्रॉपर्टी पर मैं अपना हक जता सकती थी, लेकिन मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। नंदिता का वह भी केस खारिज हो गया।

नंदिता की किताब की वजह से पूरी साहब परेशान रहते थे

साल 2009 में नंदिता ने पुरी साहब की बायोग्राफी ‘अनलाइकली हीरो: द स्टोरी ऑफ ओम पुरी’ लिखी। उस किताब की वजह से पुरी साहब बहुत परेशान थे। पुरी साहब करेक्टर आर्टिस्ट थे। इंटरनेशनल स्तर पर बहुत बड़े कलाकार थे। बहुत मेहनत से उन्होंने अपनी जगह बनाई थी, लेकिन वो हीरो नहीं थे। जानता को हीरो के बेडरूम में झांकने का बहुत शौक होता है। करेक्टर आर्टिस्ट और विलेन की जिंदगी के बारे में जानने के लिए कोई दिलचस्पी नहीं रखता है।

पुरी साहब के बारे में जो लिखी गईं, गलत थी

उस किताब में पुरी साहब के अफेयर बारे में जो चीजें लिखी गईं, वह गलत थी। पुरी साहब ने नंदिता को किताब लिखने की परमिशन दी थी या नहीं दी थी, इसके बारे में मुझे नहीं जानकारी है। ना ही इसके बारे में जानने की कोशिश की, लेकिन मेरा यह नजरिया है कि किसी और स्त्री के बारे में बहुत ही सोच समझकर लिखना चाहिए।

किसी स्त्री को बदनाम करने का कोई औचित्य नहीं

आज की तारीख में वो स्त्रियां जो पुरी साहब की उस समय गर्लफ्रेंड रही होंगी या जिनके साथ समय बिताया होगा। वो आज नानी दादी होंगी। उनको बदनाम नहीं करना चाहिए। पुरी साहब को बदनाम करती तो चलता, क्योंकि वो उनके पति थे। अगर पूरी साहब को कोई प्रॉब्लम होती तो लड़ लेते, लेकिन किसी और स्त्री की छवि खराब करना गलत बात है।



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