Best motivation kahani ego story in hindi अहंकार का त्याग hindi kahaniya
आज में आपके सामने खोज कर अहंकार के ऊपर एक चरितार्थ कहानी ले कर आया हु | वर्तमान समय में सभी अंहकार के कारण अपनी बोक्ष के तले दबे चले जा रहे है। अंहकार में व्यक्ति अपने अस्तिव को भुलता चला जा रहा है। हमे अंहकार को छोड़ कर सूविचारो को अपनाना चाहिए।
एक बार की बात है, ऊंची पहाड़ी पर एक स्वर्ण का मंदिर था, उसमे बहुमूल्य हीरे-ज्वाहरात और खजाने था उसमें एक पुजारी रहत था जो बुजुर्ग हो चला था । इसिलए उसने पहाड़ी के नीचे राज्य में खबर भिजवायी कि मुझे इस मंदिर के लिए नए पुजारी को चुनना है। जो व्यक्ति सर्वाधिक शक्तिशाली होगा उसकी नियुक्ति हो जाएगी। क्यो की वह शक्ति का मंदिर था। |
उक्त तिथि पर, जो लोग अपने आप को शक्तिशाली समझते हों वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए पहाड़ की चढ़ाई शुरू करें । जो व्यक्ति चढ़ाई कर सबसे पहले ऊपर पहुंचेगा, वही पुजारी हो बनने योग्य होगा।
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उस राज्य में दूर-दूर तक जहां-जहां तक खबर पहुँची, वहा- वहा के लोगों के मन में उत्कंठा हुई। इतना बडे मंदिर वो भी स्वर्ण का मंदिर, अरबों-खरबों की संपत्ति का मंदिर और केवल उसका पुजारी ही सब कुछ होता है । तो कौन नहीं होना चाहेगा?
जितने भी शक्तिशाली युवा थे, जिनके मन में भी आकांक्षा थी, वे सारे लोग इकट्ठे हो गए। करीब दो-सौ जवान जो अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार शक्तिशाली थे, उक्त तिथि पर उस पहाड़ पर चढ़ने के लिए उपस्तिथ हो गए।
हर जवान ने एक बड़ा पत्थार अपने-अपने कंधे पर ले लिया। जो उनके पौरुष (शक्ति) का प्रतीक था, कि कौन कितने बड़े पत्थर को लेकर चढ़ा सकता है। जो जितना शक्तिशाली था उसने उतना ही बड़ा पत्थर अपने कंधे पर ले लिया ओर चढ़ने लगे, पहाड़ की चढ़ाई बड़ी थी , पत्थर भी भारी, उनके प्राण घुटे जा रहे थे लेकिन अहंकार में सब तकलीफ को सहने करने के लिए तैयार थे। अहंकार में कुछ तो पत्थरों के नीचे दबे जा रहे थे,
वे भूखे-प्यासे चढ़ाई किये जा रहे थे, यह तक कि पत्थरों को घसीटने, नीच रखने की भी फुर्सत न थी, खाने-पीने की भी फुर्सत न थी, क्योंकि कौन पहले पहुंच जाए! कुछ तो उन पत्थरों के नीचे दब गए और मर गए, लेकिन पत्थर को छोडा नही रहे थे। मरते दम तक वे पत्थर अपने सिर पर रखे हुए थे। क्यो की वह उनकी पौरुष के प्रतीक था। कुछ तो
खड्डों में गिर गए, कुछ बीमार पड़ गए, किसी के हाथ-पैर टूट गए गिरने से। लेकिन कोई रुक नही रहा था । किसको फुर्सत भी नही जो गिर गया था उसे देखने की। जो गिर गया, वह गया। हम तो आगे बढ़े चले ओर सब इस प्रकार पहाड़ पर चढ़े चलेते है।
लेकिन आखिरी दिन, जो कि सातवां दिन था करीब आ गया, सांझ होने लगी। वे लोग करीब- करीब पहुंचने को थे तभी उन्होंने देखा की, जो सबसे पीछे रह गया वह आदमी एकदम आगे निकला जा रहा है। जो दुबला-पतला, कमजोर आदमी था, सब हैरान हो गए!
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लेकिन फिर सब हंसने लगे। उन्होंने सोचा, इस पागल के पहुंचने का प्रयोजन भी क्या? उसने पत्थर फेंक दिया था, बिना पत्थर भागा जा रहा था। अब बिना पत्थर के तो किसी की भी गति बढ़ जाएगी। उन्होंने उससे कहा भी – कि तुम नासमझ हो। तुम कहां भागे जाते हो? आखिर तुम्हारे पहुंचने का फायदा भी क्या? तुम पहुंच भी गए तो तुमहें कौन मानेगा? पौरुष का प्रतीक कहां है? लेकिन उसने किसी की सुनी नहीं, वह भागे चला गया। वे सब हंसते रहे कि पागल है, नासमझ है। इसके पहुंचने से कोई फल भी नहीं मिलने वाला है।
लेकिन जब सांझ को वे सब वहां पहुंचे और सारे पर्वतारोहियों की सभा हुई तो उस पुजारी ने घोषणा कि, वह युवक ही सबसे पहले आया और उसको मैंने पुजारी बना दिया तो सब चिल्लाए कि कैसा अन्याय है! उस पूजारी ने कहा, कोई अन्याय नहीं है। परमात्मा के पुजारी होने का हक केवल उन्हीं को है जो अपने अहंकार के भार को छोड़ देते हैं। इस युवक ने अदभुत साहस का परिचय दिया है। तुम सब भारग्रस्त लोगों के बीच यह अपने भार को फेंक सका, निर्बल हो सका, अपने पौरुष-प्रतीक से छुटकारा पा सका, अपने अहंकार के भार से मुक्त हो सका, निर्भार होकर आगे बढ़ा ओर तुमने लाख उसकी हँसी उड़ाई फिर भी नही रूखा। यह अदभुत साहस की बात है। इसलिए मैने इसे पुजारी का पद दिया हैं।
यह तो कथा, प्रतीक कथा है, लेकिन जीवन में भी यही सत्य है। जो लोग भी सत्य की और परमात्मा की यात्रा में हैं वे स्मरण रखें कि जो भार उन्होंने अपने ऊपर ले रखे हैं वे सब उनको रोक रहे हैं। और ज्ञान का भार सबसे बड़ा भार है। क्योंकि ज्ञान का बोझ सबसे बड़ा अहंकार है। आप क्यों कहते हैं कि ईश्वर है? क्यों कहते हैं कि आत्मा है? क्योंकि यह कहने से आप ज्ञानी मालूम पड़ते हैं। हालांकि आपको पता कुछ भी नहीं है कि आत्मा है या ईश्वर। कुछ भी पता नहीं है। लेकिन यह कहने से आपके अहंकार की तृप्ति होती है कि मैं भी जानता हूं। मैं भी जानता हूं। मैं कोई अज्ञानी नहीं हूं। इसलिए अगर कोई आपकी बात का खंडन करे तो आप तलवार निकाल लेते हैं, क्योंकि आपकी बात का खंडन नहीं है, आपके अहंकार का खंडन हो जाता है।
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